फिल्म "भूमिजा" जिसके निर्मात्री

PUBLISHED ON:12am,रबिवार,2021-05-14

फिल्म "भूमिजा" जिसके निर्मात्री मधुरतन मिश्रा सह निर्माता रत्नेश चतुर्वेदी, निर्देशक अजित कुमार एवं सह निर्देशिका भूमिका गणेश (नेपाल) साथ में अभिनेत्री समीरा (दुबई) हैं जिसकी तैयारी बड़े ही खामोशी के साथ सफलतापूर्वक चल रही है जो आने वाले कल के लिए ये फिल्म समाज में व्याप्त महिलाओं के उपर अतार्किक रूढ़िवादी परंपरा एवं तथाकथित मानसिक रूप से विक्षिप्त असामाजिक तत्वों के प्रहारों का करारा जवाब बनेगा । मूलतः ये फिल्म " भूमिजा " स्त्रियों के मान सम्मान और अभिमान की रक्षा करता है और समाज को एक सकारात्मक संदेश देता है। मनु ने कहा था-'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता' अर्थात जहाँ स्त्रियों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है, वहां पर पुरूषों की गिनती स्वतः देवताओं की कोटि में कि जाती है । इसी सोच का समर्थक और परिचायक है ये फिल्म "भूमिजा'। देखा जाए तो आज भी हमारे देश की स्त्रियों चाहे वो जिस समाज या जाति की हो वो असहाय, अबला और किसी न किसी रूप से पुरूषवादी मानसिकता का शिकार हैं जिसमें एक ठोस वजह समाज में व्याप्त सदियों से चली आ रही अतार्किक परंपरा और रूढ़िवादीता जो स्त्रियों का मानसिक और शारीरिक शोषण कर रहीं हैं । आज भी हमारे देश के कई हिस्सों में धार्मिक आडम्बर रूढ़िगत विचार परंपरागत सामाजिक संस्कार सभी ने मिलकर अंधकार का ऐसा परिवेश भारतीय जीवन के चारों तरफ निर्मित कर दिया है , ऐसे ही शोषण के विरुद्ध एक सामाजिक आंदोलन है फिल्म 'भूमिजा 'जो सोई हुई चेतना में जान फुंकने का एक प्रयास करेगी जिससे हमारा समाज और उसकी सोच पुरातन स्त्री- विरोधी रूढ़िवादी विचारों से मुक्त और आजाद हो। इस संबंध में स्वामी विवेकानंद जी का कथन पे स्त्रियों को भी ध्यान देना होगा , उन्होंने कहा था- 'महिलाएं जबतक स्वयं अपने विकास के लिए आगे नहीं आऐंगी तबतक उनका विकास असंभव है' अंत में सिर्फ इतना कहूंगा इस फिल्म की सार्थकता और सफलता पे आपका सहयोग, स्नेह और आशीर्वाद अपेक्षित है। www.bhumija.in धन्यवाद ।. औरत की कोख किसी भी मर्द का एक पहला घर होता है और मर्द इसे नजरअंदाज कर उस औरत को बाजार देता है जो एक मर्द की जननी होती है।देवी देवताओं में देखा जाए तो देवीही ज्यादा हैं जिसे हम पूजते है चाहे वो लक्ष्मी हो , दुर्गा हो सरस्वती या सावित्री या फिर कोई अन्य ।इन सबके बावजूद हमारे देश में स्त्रियाँ ही प्रताड़ित होती है आखिर क्यों? सती- प्रथा की बेडियो को तो हम ध्वस्त कर दिये पर समाज में व्याप्त कुरितिया, विक्षिप्त मानसिकता, अतार्किक रूडवादि परंपराओं से हम स्त्रियों को आजादी कब दिला पाऐंगे? ऐसे ही ज्वलंत परंपराओं के उपर एक तीखा प्रहार है निर्माता मधु रतन मिश्रा, रत्नेश चतुर्वेदी एवं निर्देशक अजित कुमार एवं सह- निर्देशिका भूमिका गणेश ( नेपाल) साथ ही साथ अभिनेत्री समीरा( दुबई; UAE) की आने वाली फिल्म " भूमिजा " जिसकी तैयारी बड़े ही जोर शोर से चल रही है। इस फिल्म की धेय्य और लक्ष्य से न सिर्फ राष्ट्रीय ब्लिक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पे भी लोगों की साकारात्मक प्रतिक्रिया एवं सुझाव इसके वेबसाइट www.bhumija.in पे लगातार प्राप्त हो रहें हैं, आपका भी सुझाव और सहयोग अपेक्षित है। इस फिल्म के निर्माता निर्देशक अपने देश में महिलाओं के उपर हो रहे है अत्याचार चाहे वो धर्म के आड़ में हो या फिर रूढ़िवादी परंपराओं के आड़ में हो या समाज में तथाकथित कुछ असामाजिक तत्वों के विक्षिप्त मानसिकता के तहत हो इन सबके उपर एक करारा तमाचा है " भूमिजा "। हमें उम्मीद ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि इस फिल्म के प्रदर्शित होने पे स्त्रियों के मान सम्मान और इज्जत की आजादी के लिए " भूमिजा" को हमेशा याद रखा जाएगा पर ये आप दर्शकों के सहयोग के बिना असंभव है ।. एक बार पुनः 'गीता ' का श्लोक चरितार्थ हुआ जिसमें भगवान कृष्ण ने कहा था- "यदा यदा हि धर्मस्य ग्लार्नीभवतीभारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।। परित्राणय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम। धर्मसंस्थापनाथार्य सम्भवामि युगे युगे।। अर्थात जब जब धर्म की हानी होती है अधर्म बढ़ जाता है तब धर्म की पुनर्स्थापना के लिए किसी न किसी रूप में कृष्ण अवतार लेते हैं । आज न सिर्फ भारत बल्की दुनिया के कई देशों में नारी अत्याचार किसी न किसी रूप में व्याप्त है जिसमें एक ज्वलंत समस्या बलात्कार है । काफी सालों से 'निर्भया' की आत्मा चिंतित कर अपने इंसाफ की गुहार लगा रही थी । कहीं न कहीं उसकी माँ 'आशा' की आशा न्याय के मंदिर अदालत और उसके पुजारी जज से थी और उसकी यही साकारात्मक आशा और विश्वास उसकी बेटी ' निर्भया' की इंसाफ के लिए भटकती आत्मा को शुकून और शांति प्रदान किया। देश के इंसाफ का मंदिर अदालत और उसके न्यायसंगत पुजारी न्यायाधीश श्री जे.मोहन और बेटी 'निर्भया' के लिए अदालत में अपनी कानूनी आवाज बुलंद करने वाली अधिवक्ता श्रीमती सीमा कुशवाहा जी को " भूमिजा " सैलूट करती है जिनके बदौलत " निर्भया" को इंसाफ मिला और "भूमिजा" की जीत हुई । "निर्भया" सिर्फ आशा देवी की ही नहीं बेटी थी बल्की वो भारत माता की बेटी थी, हर घर की बेटी थी, हर घर की "भूमिजा" थी। न्यायालय ने "निर्भया" के ब्लात्कारियों को फांसी की सजा देकर " हर घर की "भूमिजा" की शक्ति को संवैधानिक बल दिया है। आने वाले कल में बहुत ही जल्द स्त्रियों के मान सम्मान, इज्जत और प्रतिष्ठा के लिए वचनवद्ध फिल्म " भूमिजा " के निर्माता मधुरत्न मिश्रा सह निर्माता रत्नेश चतुर्वेदी, सह निर्देशिका भूमिका गणेश (नेपाल) इस फिल्म के कलाकार समस्त "भूमिजा" परिवार लेकर आ रहें हैं ऐसे ही ज्वलंत मुद्दों, रूढ़िवादी परंपराओं और सामाजिक समस्याओं को फिल्म " भूमिजा " के माध्यम से। इस फ़िल्म के निर्देशक हैं अजीत कुमार.